स्वयं सहायता समूह की महिला बनी मिसाल
#Swayam sahayat samuh #mahila bani mishal
कन्नौज जिले के उदयतापुर गाँव में रहने वाली महिला सुनीता चौहान ने। सुनीता चौहान ने राष्ट्रीय आजीविका मिशन योजना के अंतर्गत समूह बनाकर न केवल अपनी आर्थिक व सामाजिक स्थित को मजबूत किया साथ ही 2 हजार से ज्यादा महिलाओ को स्वयं सहायता समूह से जोड़कर उनको भी आत्मनिर्भर बनाया। सुनीता पुरे भारत की महिलाओ के लिए प्रेरणा स्रोत बन गयी है वह अपने समूह में आटा दाल चावल मैदा कच्ची धनिया की पैकिंग के साथ साथ दीपावली त्यौहार में वोकल से लोकल को अपनाकर गाय के गोबर से गणेश लक्ष्मी व दीपक बनाने का काम शुरू किया है इस काम में वह समूह की महिलाओ को स्व रोजगार के साथ साथ आत्मनिर्भर बना रही है। सुनीता चौहान ने बताया कि वह मैनपुरी जिले की रहने वाली है सन 2002 में उनके पति की हत्या कर दी गयी थी उस समय वह बहुत परेशान थी परेशानी के कारण वह अपने बच्चो के साथ आत्म हत्या करना चाहती थी। सुनीता ने अपनी हिम्मत को हारने नहीं दिया वह अपने छोटे छोटे तीनो बच्चो को लेकर अपने ससुर के घर कन्नौज के उदयतापुर गाँव में आकर रहने लगी। 2004 में उसको समूह के बारे में जानकारी मिली उसने अपनी मुसीबतो को पीछे छोड़ते हुए समूह का गठन किया और फिर धीरे धीरे वह समूह से महिलाओ को जोडती हुयी चली गयी।
#Swayam sahayat samuh #mahila bani mishal
कन्नौज जिले के उदयतापुर गाँव में रहने वाली महिला सुनीता चौहान ने। सुनीता चौहान ने राष्ट्रीय आजीविका मिशन योजना के अंतर्गत समूह बनाकर न केवल अपनी आर्थिक व सामाजिक स्थित को मजबूत किया साथ ही 2 हजार से ज्यादा महिलाओ को स्वयं सहायता समूह से जोड़कर उनको भी आत्मनिर्भर बनाया। सुनीता पुरे भारत की महिलाओ के लिए प्रेरणा स्रोत बन गयी है वह अपने समूह में आटा दाल चावल मैदा कच्ची धनिया की पैकिंग के साथ साथ दीपावली त्यौहार में वोकल से लोकल को अपनाकर गाय के गोबर से गणेश लक्ष्मी व दीपक बनाने का काम शुरू किया है इस काम में वह समूह की महिलाओ को स्व रोजगार के साथ साथ आत्मनिर्भर बना रही है। सुनीता चौहान ने बताया कि वह मैनपुरी जिले की रहने वाली है सन 2002 में उनके पति की हत्या कर दी गयी थी उस समय वह बहुत परेशान थी परेशानी के कारण वह अपने बच्चो के साथ आत्म हत्या करना चाहती थी। सुनीता ने अपनी हिम्मत को हारने नहीं दिया वह अपने छोटे छोटे तीनो बच्चो को लेकर अपने ससुर के घर कन्नौज के उदयतापुर गाँव में आकर रहने लगी। 2004 में उसको समूह के बारे में जानकारी मिली उसने अपनी मुसीबतो को पीछे छोड़ते हुए समूह का गठन किया और फिर धीरे धीरे वह समूह से महिलाओ को जोडती हुयी चली गयी।
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